कटनी में मानसून अपने पूरे शबाब पर है। दिनभर बादल छाए रहते हैं। कभी रिमझिम फुहार, तो कभी मूसलाधार बारिश। कभी सुबह धूप होती है, तो शाम होते होते कजरारे मेघदूत आकाश में छा जाते हैं और हरियाली, ख़ुशहाली का राग मियाँ मल्हार छेड़ देते हैं।
कल मुझे लगा कि इस बार मानसून बड़ा सुंदर और समृद्ध है। वर्ना अर्सा गुज़र गया ऐसा मौसम देखे! फिर याद आया कि मैं अब कटनी में हूँ और यहाँ तो वर्षाकाल ऐसा ही होता है। एक दशक बाद भादों में यहाँ हूँ।
एक बात और याद आई: पहले कटनी में जब शाम को ट्यूशन पढ़ाता था, तो कभी कभी बारिश होने पर हम किताबें बंद करके हारमोनियम खोलते थे और राग मियाँ मल्हार का आनंद लेते थे। साँवली शीतलता के आलिंगन में बैठे ८-१० लोग मिलकर "अति झूम झूम रे/अति आयो बादरबा/उमड़-घुमड़ गरज बरस/बरसन को लागे री" गाते। और भी कई बंदिशे थीं वर्षा से संबंधित। बारिश की टपकती बूँदों की ताल और गरजते मेघदूतों का मृदंग! अहा, लगता था पूरा ब्रम्हांड ही संगीतमय हो गया!
सब उस्ताद की कृपा थी कि शास्त्रीय संगीत की मिठास हमारे जीवन में घुल गई। और फिर इस मिठास में हम स्वयं ही घुल गए।
कटनी में मेघदूत मात्र बरसात के वाहक ही नहीं हैं, वे हमारे गुरू भी हैं जिन्होंने हमें जीने की कला सिखाई है। उन्हें शत शत नमन।